1 POWERFUL INVOCATION – SHANKAR JI AARTI

ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभा। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

SHANKAR JI AARTI

आरती, हमारे हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रथा है जिसमें हम देवी-देवताओं का स्वागत करते हैं और उनकी पूजा अर्चना करते हैं। Shankar Ji Aarti भी इन आरतियों में से एक है, जिसमें भगवान शंकर की महिमा का गुणगान किया जाता है। यह आरती श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत प्रिय है और इसका पाठ करने से मान्यता है कि भगवान शंकर जी की कृपा प्राप्त होती है। इस ब्लॉग में, हम शिव जी की आरती (Shivji Ki Aarti) के महत्व, शब्द और आरती का महत्व जानेंगे।

Shankar Ji Aarti आवगमन

शंकर जी आरती (Shankar Ji Aarti) भगवान शंकर के नाम का गुणगान करने और उनकी महिमा को याद करने का एक प्रमुख तरीका है। यह आरती भगवान शंकर के प्रति भक्तों की अद्भुत भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। इसे रोज़ाना या विशेष धार्मिक अवसरों पर पढ़ा जाता है, और यह भगवान शंकर के प्रति दिल से समर्पित भक्तों के लिए एक आदर्श माध्यम है।

शंकर जी आरती (Shankar Ji Aarti) का पाठ करने से भक्त भगवान शंकर के साथ अपने मानसिक और आत्मिक संबंध को मजबूत करते हैं। आरती करने से भगवान शंकर अपने भक्तों की आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक मार्गदर्शन प्रदान करते है और भक्तों को शांति और सुख की अनुभूति होती है। इसके अलावा, शंकर जी की आरती (Shankar Ji Ki Aarti) के शब्दों का पाठ करने से श्रद्धालु भक्त अपने जीवन को भी सकारात्मक और संतुलित बनाते हैं।

SHANKAR JI KI AARTI

Shankar Ji Aarti का पाठ

शंकर जी की आरती (Shankar Ji Aarti) का पाठ करने से पहले, यहां हम इसके शब्दों को प्रस्तुत कर रहे हैं:

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा-विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ ॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ ॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन मन मोहे ॥ ॐ ॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद चंदा, सोहे त्रिपुरारी॥ ॐ ॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
ब्रह्मादिक सनकादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ ॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगहर्ता जगपालनकर्ता॥ ॐ ॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ ॥

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ ॥

Shankar Ji Aarti के महत्व

शंकर जी आरती का पाठ करने के कई महत्वपूर्ण कारण हैं:

SHANKAR BHAGWAN AARTI

आत्मिक शांति: शंकर जी आरती (Shankar Ji Aarti) का पाठ करने से मान्यता है कि आत्मा को शांति और सुख मिलता है। यह आरती भक्तों को आत्मा के शांति की ओर अग्रसर करती है और उन्हें मानसिक स्थिरता प्रदान करती है।

भगवान के प्रति भक्ति: शंकर जी आरती (Shankar Ji Aarti) का पाठ करने से भक्त भगवान शंकर के प्रति अपनी अद्भुत भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक दिखाते हैं। यह आरती भगवान के साथ भक्त के आत्मिक संबंध को मजबूत करती है।

आध्यात्मिक उन्नति: शंकर जी आरती (Shankar Ji Aarti) का पाठ करने से भक्त अपने आध्यात्मिक उन्नति के दिशा में कदम बढ़ाते हैं। यह भक्त को अध्यात्मिक ज्ञान और संवाद की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है।

कर्मबंधन से मुक्ति: शंकर जी आरती (Shankar Ji Aarti) का पठन करने से कहा जाता है कि भक्त कर्मबंधन से मुक्ति प्राप्त करते हैं और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Shankar Ji Aarti के अनुपम शब्द

शंकर जी आरती (Shankar Bhagwan Aarti) के शब्द अत्यंत प्रेरणास्पद हैं और भगवान शंकर की महिमा को अद्वितीय ढंग से व्यक्त करते हैं। यहां हर शब्द एक विशेष भावना को दर्शाता है और भक्त को आत्मा के संबंध में सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है।

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
यह पंक्ति आरती की शुरुआत करती है और इसका अर्थ है, “हे ओंकार के राजा, हे शिव ओंकार के स्वामी, हम आपको प्रणाम करते हैं।

ब्रह्मा-विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ ॥
इस पंक्ति में शिव के विभिन्न रूपों का उल्लेख है, जैसे कि ब्रह्मा, विष्णु, और सदाशिव, और उनके आधे शरीर के धारणा के साथ।

एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ ॥
इस पंक्ति में शिव के विभिन्न रूपों का वर्णन है, जैसे कि एकमुख, चतुर्मुख, पंचमुख, हंस आसन, गरुड़ आसन, और वृषवाहन धारण किए हुए।

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। तीनों रूप निरखते त्रिभुवन मन मोहे ॥ ॐ ॥
यह पंक्ति शिव के विभिन्न रूपों का वर्णन करती है, जैसे कि दो भुजाएँ, चार भुजाएँ, दस भुजाएँ, और उनके तीन रूपों को देखकर त्रिभुवन (तीनों लोक) के मन को मोहित करते हैं।

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी। चंदन मृगमद चंदा, सोहे त्रिपुरारी॥ ॐ ॥
इस पंक्ति में शिव के विभिन्न आकर्षक आभूषणों और धारणाओं का वर्णन है, जैसे कि माला, बनमाला, मुण्डमाला, और चंदन की माला। इसमें भी शिव का एक उपनाम त्रिपुरारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। ब्रह्मादिक सनकादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ ॥
इस पंक्ति में शिव के धारण किए गए वस्त्रों और उनके शरीर के रंग का वर्णन है, और उनके साथ ब्रह्मा, सनकादि ऋषियों, और भूतों का संग होता है।

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता। जगकर्ता जगहर्ता जगपालनकर्ता॥ ॐ ॥
इस पंक्ति में शिव के हाथ में कमंडलु (जल भरने का पात्र), चक्र (चक्र धारण किया हुआ), और त्रिशूल (तीन मुख वाला त्रिशूल) का वर्णन है, और वह जगत का कर्ता, हरण करने वाला, और पालने वाला होते हैं।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ ॥
इस पंक्ति में बताया गया है कि शिव के अतिरिक्त ब्रह्मा, विष्णु, और सदाशिव को जानने वाले अविवेकी होते हैं, लेकिन प्रणवाक्षर (ॐ) के मध्य में ये तीन एक होते हैं, यानी ब्रह्मा, विष्णु, और महेश केवल एक ही परम ब्रह्म के रूप होते हैं।

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ ॥
इस आरती को जो कोई भक्त गाता है, वह त्रिगुण शिव जी की पूजा करता है। इसे गाने से शिवानंद स्वामी कहते हैं कि भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूरा कर सकता है और शिव जी के आशीर्वाद को प्राप्त कर सकता है।

दिव्य समंजस्य का जन्म

SHIV JI JI AARTI

शिव आरती की एक दिलचस्प रूपकथा है “दिव्य समंजस्य का जन्म” जिसका वर्णन काशीपुराण में किया गया है। इस कथा के अनुसार, एक समय भगवान शंकर ध्यान में लिपटे थे और उनके दिल में एक दिव्य इच्छा उत्पन्न हुई। वे चाहते थे कि एक अत्यंत सुंदर और समंजस्य रूप में उनकी शक्ति धारण करे और वे उसे अपनी आंखों के सामने देख सकें।

भगवान शंकर की इस इच्छा को जानकर उनकी पत्नी पार्वती ने अपने तपस्या और प्रेम से एक दिव्य सुंदर कन्या का निर्माण किया। वह कन्या इतनी सुंदर थी कि उसकी सुंदरता को देखकर भगवान शंकर भी हेरफेर में आ गए और वह अपनी आंखों से उसका दर्शन करके प्रसन्न हुए। उसकी शक्ति धारण करते हुए भगवान शंकर ने उसका नाम “समंजस्य” रखा और उसकी महिमा का गुणगान किया।

इस कथा से यह संदेश मिलता है कि भगवान की इच्छा और भक्त की तपस्या और प्रेम से सब कुछ संभव हो सकता है। दिव्य समंजस्य का जन्म भगवान शंकर की इच्छा और पार्वती की तपस्या का परिणाम था, और यही कारण है कि वह बहुत ही सुंदर और समंजस्य थी।

भगवान शंकर और देवी पार्वती का एक अद्वितीय प्रतीक

शिव आरती का पाठ करते समय एक श्लोक में कहा जाता है:

भवांभवनी अक्षया, अस्त्र ज्ञान हारा।

इस श्लोक में देवी पार्वती का वर्णन किया गया है, जिन्हें “भवांभवनी” कहा जाता है। यह शब्द उनके महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है, जो भगवान शिव की पत्नी के रूप में हैं। देवी पार्वती भक्तों की मांगों को पूरा करने वाली हैं और उन्हें अस्त्र और ज्ञान की प्राप्ति में सहायक होती हैं। वह भक्तों के लिए एक आदर्श माता का प्रतीक है और उनकी रक्षा करती हैं।

दिव्य ऊर्जा का आपसी मिलन

शिव आरती का पाठ करने से भक्त की आत्मा और शिव की दिव्य ऊर्जा का आपसी मिलन होता है। यह आरती भक्त को शिव की प्रेम और कृपा का अनुभव कराती है और उसे आत्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है। इसके अलावा, यह आरती भक्त को भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास की मजबूती की ओर ले जाती है और उसे अपने जीवन के महत्वपूर्ण मोमेंट्स में भगवान की स्मृति रखने के लिए प्रोत्साहित करती है।

Shankar Ji की कृपा और क्षमा की मांग

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधं।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्वा।
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो।

यह श्लोक संस्कृत में है और इसका अर्थ है:

“कर्मों को चाहे वे शरीर द्वारा किए गए हों, वाणी द्वारा किए गए हों, या मन से किए गए हों, और चाहे वे कर्म विधिपूर्वक हों या अनुशासित नहीं हों, तुम सभी को क्षमा करो। हे महादेव शम्भो, तुम ही जय हो, तुम ही करुणामय हो।”

यह श्लोक भगवान शिव की महिमा की प्रशंसा करने के रूप में उनकी कृपा और क्षमा की मांग करता है। यह एक प्रार्थना होती है कि भगवान शिव सभी के पापों को क्षमा करें और सभी की रक्षा करें।

Shankar Ji Aarti के अन्य फायदे

SHIV AARTI

शिव आरती का पाठ करने के अन्य फायदे भी हैं:

मानसिक शांति: शिव आरती का पाठ मान्यता है कि यह मानसिक तनाव और चिंता को दूर करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।

स्वास्थ्य लाभ: इस आरती का पाठ करने से भक्त के शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है और वह तनाव से मुक्त होता है।

कर्मबंधन से मुक्ति: शिव आरती का पाठ करने से कहा जाता है कि भक्त कर्मबंधन से मुक्ति प्राप्त करते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

संकटों से मुक्ति: इस आरती का पाठ करने से कहा जाता है कि भगवान शिव संकटों से मुक्ति देने वाले होते हैं और वे अपने भक्तों की समस्याओं को हल करते हैं।

Shankar Ji Aarti का अवसर

Shankar Ji Aarti का पाठ करने के विभिन्न अवसर होते हैं:

महाशिवरात्रि: महाशिवरात्रि एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन भगवान शिव की पूजा और शिव आरती का पाठ विशेष उत्सव के रूप में किया जाता है।

सोमवार व्रत: सोमवार को भगवान शिव के दिन के रूप में माना जाता है, और भक्त इस दिन शिव आरती का पाठ करके उनकी कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

कार्तिक / सावन मास: कार्तिक / सावन मास, जो व्रत और पूजा का महीना माना जाता है, में भी भगवान शिव की पूजा और शिव आरती का पाठ किया जाता है।

दिनचर्या: कई लोग रोजाना भगवान शिव की पूजा और शिव आरती का पाठ करते हैं, जो उनके दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है।

Shankar Ji Aarti की महत्वपूर्ण बातें

भगवान शिव की प्रेम और कृपा का प्रतीक: Bhole Baba Ki Aarti का पाठ करने से भक्त भगवान शिव की प्रेम और कृपा का अनुभव करते हैं और उनके दिव्य स्वरूप को जानने का मौका प्राप्त करते हैं।

आत्मिक उन्नति: शिव आरती का पाठ करने से भक्त की आत्मा के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है और वह आत्मा के उद्धारण की दिशा में आगे बढ़ता है।

कर्मबंधन से मुक्ति: इस आरती का पाठ करने से कहा जाता है कि भक्त कर्मबंधन से मुक्ति प्राप्त करते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

संकटों से मुक्ति: शिव आरती का पाठ करने से कहा जाता है कि भगवान शिव संकटों से मुक्ति देने वाले होते हैं और वे अपने भक्तों की समस्याओं को हल करते हैं।

आत्मिक संबंध: शिव आरती का पाठ करने से भक्त अपने आत्मिक संबंध को मजबूत करते हैं और उनका आत्मा के साथ एक मिलन होता है।

SHANKAR JI AARTI

निष्कर्ष

भगवान शिव की आराधना का महत्वपूर्ण हिस्सा Shankar Ji Aarti है, जो भक्तों को उनकी प्रेम और कृपा का अनुभव करने का मौका प्रदान करती है। यह आरती भक्तों को आत्मा के शांति और सुख की ओर अग्रसर करती है और उन्हें मानसिक स्थिरता प्रदान करती है। इसके अलावा, यह आरती भगवान के साथ भक्त के आत्मिक संबंध को मजबूत करती है और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है। इसलिए, शिव आरती का पाठ करना भक्तों के जीवन के एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और वे इसके माध्यम से भगवान की आराधना और समर्पण करते हैं।

Shankar Ji Aarti का पाठ करने से भक्त की आत्मा और शिव की दिव्य ऊर्जा का आपसी मिलन होता है, जिससे वह अपने जीवन को सफलता और सुख की दिशा में अग्रसर कर सकता है। यह आरती भक्तों को भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास की मजबूती की ओर ले जाती है और उन्हें अपने जीवन के महत्वपूर्ण मोमेंट्स में भगवान की स्मृति रखने के लिए प्रोत्साहित करती है।

इसके अलावा, यह आरती भक्त को भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और कृपा का प्रतीक बनाती है और उसे आत्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है। शिव आरती का पाठ करने से भक्त कर्मबंधन से मुक्ति प्राप्त करते हैं और उन्हें संकटों से मुक्ति मिलती है।

इसलिए, Shankar Ji Aarti का पाठ करना भक्तों के जीवन के एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और वे इसके माध्यम से भगवान की आराधना और समर्पण करते हैं। इस आरती का पाठ करने से भक्त की आत्मा और शिव की दिव्य ऊर्जा का आपसी मिलन होता है और वह अपने जीवन को सफलता और सुख की दिशा में अग्रसर कर सकता है। यह आरती भक्तों को भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास की मजबूती की ओर ले जाती है और उन्हें अपने जीवन के महत्वपूर्ण मोमेंट्स में भगवान की स्मृति रखने के लिए प्रोत्साहित करती है।

shankar ji aarti

FAQ’S

शंकर जी की आरती क्या होती है?

शंकर जी की आरती एक पूजा विधि है जिसमें भगवान शिव की महिमा की प्रशंसा की जाती है। इसके दौरान विशेष मंत्र और गीत गाए जाते हैं।

शंकर जी की आरती कब और कैसे की जाती है?

शंकर जी की आरती रोज़ाना या विशेष पूजा अवसरों पर की जा सकती है। इसे मंदिरों और गृह मंदिरों में भी पढ़ा जाता है। आरती के दौरान दीपक जलाया जाता है और भगवान की प्रतिमा को प्रदर्शित किया जाता है।

शंकर जी की आरती क्यों महत्वपूर्ण है?

शंकर जी की आरती भक्तों के लिए उनके आराध्य भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक होती है। इसके माध्यम से भक्त भगवान की महिमा को स्तुति करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं।

शंकर जी की आरती के क्या फायदे हैं?

शंकर जी की आरती का पाठ करने से भक्त आत्मिक शांति, मानसिक प्रशांति, और भगवान के प्रति श्रद्धा में वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। यह भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है।

शंकर जी की आरती के कुछ प्रमुख मंत्र क्या होते हैं?

शंकर जी की आरती के प्रमुख मंत्र में “ॐ जय शिव ओंकारा” और “हे महादेव शम्भो” शामिल होते हैं, जिन्हें भक्त गुणगान और प्रशंसा के रूप में पढ़ते हैं।

ॐ गं गणपतये नमः

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